Thursday, October 16, 2025

पहाड़ी जौनसारी बोली का भाषा में विकास की प्रबल संभावनाएँ : रमेश चन्द जोशी



उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में स्थित जौनसार-बावर जनजाति क्षेत्र अपनी अनूठी संस्कृतिपरंपराओं और विशिष्ट बोली के लिए जाना जाता है। यहाँ की जौनसारी  भाषा   केवल इस क्षेत्रकी पहचान हैबल्कि यहाँ के लोगों की सदियों पुरानी विरासत और जीवनशैली का दर्पण भी है।एक ओर जहाँ जौनसारी भाषा अपनी मधुरता और विशिष्टता के लिये जानी जाती है वहीं ये कुछ हीबोली भाषाओं में से है जिसकी अपनी एक ऐसी लिपि  टाँकड़ी(Tankri) भी है जिस्का आज यहाँ भीप्रयोग होता है। 


लेकिन  वैश्वीकरण और मुख्यधारा की भाषाओं के बढ़ते प्रभाव के कारण इसका  अस्तित्व ख़तरे मेंमाना जा रहा है। यूनेस्को के भाषा बोलियों पर अंतिम एटलस में  इस भाषा को भी गंभीर ख़तरे मेंबताया गया था।  

गौर  करने वाली यह बात है कि कोई बोली या भाषा में शब्द और वाक्य निर्माणउनकी  स्वीकारोक्ति एक व्यापक और बहुत लंबे कालखंड में जाकर प्राप्त हो पाती है। अतः किसी भीबोली भाषा का अस्तित्व ख़त्म हो जाय यह तत्कालीन पीढ़ी द्वारा इतिहास और धरोहर के लिए  पहुँचाई गई वबसे बड़ी क्षति है क्योंकि विभिन्नता ख़ासकर भाषाई, विश्व का अनोखा और अनिवार्यगुण है। 


जौनसारी भाषा का परिचय


जौनसर बावर का इतिहास मानव सभ्यता के प्रादुर्भाव के अनुसार ही प्राचीन है। क्षेत्र पांडव क़ालीनगाथाओं और गीत की श्रृंखलाओं से भरपूर है तथा यहाँ उनसे जुड़े भरपूर स्थान मौजूद हैं । अशोकक़ालीन युग के स्थानीय प्रमाण - ऐतिहासिक स्थल कालसी नामक स्थान  स्थित  चत्तरशीला”(Rock Edict”के रूप में देखे जा सकते हैं जो महान सम्राट अशोक के देशभर के १४ Rock Edicts में से एक है। अतः जौनसारी बोली भाषा भी उसी के  सापेक्ष प्राचीन हैं। जौनसारी भाषाथोड़ी बहुत बदलाव के साथउत्तराखण्ड  हिमाचल के कई ज़िलों में बोली जाती हैजैसे कीजौनसार बावर  बीनार(देहरादून ज़िला), जौनपुरटिहरी ज़िला), सिरमौर व शिमला (हिमाचल)। यानी लाखों लोग इस बोली को बोलने वाले आज भी मौजूद हैं। 


जौनसारी भाषा पर हिन्दीगढ़वालीकुमाऊँनीहिमाचल की अन्य बोलियों और कई अन्य  स्थानीयभाषाओं का प्रभाव भी देखा जा सकता है। जो स्वाभाविक है। ऐतिहासिक रूप सेजौनसार-बावरक्षेत्र में बाहरी हस्तक्षेप कम रहा हैजिसने इस भाषा को अपनी मौलिकता बनाए रखने में मदद कीहै।पारंपरिक रूप सेयह मौखिक परंपराओंलोकगीतोंलोक तीज त्योहारों   विवाह गीतों(हारुल आदि), धार्मिक अनुष्ठानों और दैनिक जीवन के संवादों में आज भी विद्यमान  है।


चुनौतियाँ और खतरे : 

आज जौनसारी अन्य बोली भाषा की तरहकई चुनौतियों से जूझ रही है :


बोलने  सीखने में कमीनई पीढ़ी में बोलने और सीखने में कमी  रही है। बच्चेखासकर शहरीऔर अर्ध-शहरी क्षेत्रों मेंहिंदी और अंग्रेजी को प्राथमिकता दे रहे हैं। इसका कारण रोज़गार परकसमझी जाने वाली मुख्यधारा की भाषाओं को प्राथमिकता देने का चलन हैं।


शिक्षा प्रणालीस्कूलों में जौनसारी भाषा को शिक्षा के माध्यम के रूप में नहीं पढ़ाया जाता है।पाठ्यक्रम में इसका कोई स्थान नहीं हैजिससे बच्चे अपनी मातृभाषा से दूर होते जा रहे हैं।


आर्थिक पलायनजौनसार-बावर क्षेत्र से भी लोगों का पलायन हो रहा है। रोज़गार और बेहतरअवसरों की तलाश में युवा शहरों की ओर जा रहे हैंजहाँ मुख्यधारा की भाषाओं का अधिक प्रयोगकरना स्वाभाविक हो जाता  है।


मीडिया और मनोरंजन का अभावजौनसारी में पर्याप्त साहित्यसिनेमासंगीत या टेलीविजनकार्यक्रम उपलब्ध नहीं हैं।   यहाँ तक कि बड़े पर्दे की पहली फ़ीम “मैरे गाँव की बाट” २०२४ में हीबन पायी।  संचार पत्र या अन्य मीडिया प्लेटफार्म भी  जौनसारी भाषियों को प्रयाप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हो पायें  है।


सरकारी संरक्षण की कमीअन्य कई क्षेत्रीय और आदिवासी भाषाओं की तरहजौनसारी को भीपर्याप्त सरकारी संरक्षण और संवर्धन कार्यक्रमों का अभाव है। भाषाई सर्वेक्षणदस्तावेज़ीकरणऔर प्रचार-प्रसार के प्रयास नाकाफ़ी हैं। अगर कोई योजना है भी तो जनजातीय क्षेत्र के संकोचीलोग होने की वजह से उसका उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। 


सामाजिक प्रतिष्ठाकई लोगों में यह धारणा बन गई है कि क्षेत्रीय भाषाएँ बोलना पिछड़ेपन काप्रतीक हैजबकि हिंदी और अंग्रेजी बोलना आधुनिकता और प्रगति का। यह धारणा भी भाषाकमजोर  करने का  एक कारण बन रही है।


संभावनाएँ और उत्थान  के उपाय : 

इन चुनौतियों के बावजूदजौनसारी भाषा के संरक्षण और संवर्धन की संभावनाएँ अभी भी मौजूदहैं। यदि सुनियोजित और समन्वित प्रयास किए जाएँ तो इस भाषा को पुनर्जीवित किया जा सकताहै:


शिक्षा में समावेशप्राथमिक स्तर पर जौनसारी को वैकल्पिक विषय के रूप में शामिल किया जासकता है। इसके लिए स्थानीय शिक्षकों को प्रशिक्षित किया जा सकता है और जौनसारी मेंपाठ्यपुस्तकों का निर्माण किया जा सकता है।जौनसार बावर के लोगों की अपनी  लिपि का लेखन और अध्यापन ज़रूरी है । 


डिजिटल माध्यमों का उपयोगसोशल मीडियायूट्यूब चैनलपॉडकास्ट और मोबाइल ऐप्स केसाथ साथ मेनस्ट्रीम मीडिया के माध्यम से जौनसारी भाषा को बढ़ावा दिया जा सकता है। जौनसारीमें वीडियोऑडियो और लिखित सामग्री बनाकर युवाओं को आकर्षित किया जा सकता है।


लोकगीतों और लोककथाओं का दस्तावेज़ीकरणजौनसारी लोकगीतजॉंगूबाजूहारुलछोड़ेआदि के साथ लोककथाएँ और कहावतें इस भाषा की अमूल्य धरोहर हैं। इन्हें एकत्र करलिखितरूप में दस्तावेज़ीकृत कर और ऑनलाइन उपलब्ध कराकर आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षितकिया जा सकता है।


जौनसारी साहित्य का विकासस्थानीय लेखकों और कवियों को जौनसारी में लिखने के लिएप्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इसके लिए प्रकाशन गृहों और साहित्यिक संगठनों, पुस्तकालयों को सहयोग करना चाहिए। लेखनों को स्नीय भाषाओं के अच्छे लेखों, पुस्तकों, कविताओं का अनुवाद भी करना चाहिए ।


सांस्कृतिक उत्सव और भाषा कार्यशालाएँजौनसारी सांस्कृतिक उत्सवों का आयोजन कियाजाए जहाँ भाषालोकगीतों और परंपराओं को बढ़ावा मिले। भाषा कार्यशालाएँ आयोजित की जासकती हैं ताकि लोग जौनसारी बोलना और समझना सीख सकें।


सरकारी पहल और नीतियाँसरकार को जौनसारी सहित अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के संरक्षण केलिए विशिष्ट नीतियाँ बनानी चाहिए- ख़ासकर जौनसारी सरीखी जनजातीय भाषाओं हेतु । कारण,  जनजाति समुदाय, के अभी भी संकोची जीवन के कारण, उनकी भाषा विकास उचित गति नहीं पकड़ पा हैं । अतः,  भाषा अकादमियों की स्थापनाअनुसंधान और विकास के लिए फंडऔरभाषाई सर्वेक्षण आदि किए जाने चाहिये। जौनसारी को उत्तराखंड और हिमाचल में आधिकारिकभाषाओं में से एक के रूप में मान्यता देकरसंविधान के आठवीं सूची में सम्मिलित किये जाने केलिए प्रयास किए जाने   चाहिए ।


सामुदायिक भागीदारीसबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जौनसारी भाषियों को स्वयं अपनी भाषाके संरक्षण के लिए आगे आना होगा। माता-पिता को घर पर बच्चों से जौनसारी में बात करनीचाहिएऔर युवा पीढ़ी को अपनी जड़ों से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इसकेअलावा जो भी सार्वजनिक आयोजनमीटिंगउद्घोषणा मंचसभायें ख़ासकर चुनाव सभाओं मेंजौनसारी भाषा का प्रयोग आसानी से किया जाना चाहिएहैजो आसान भी हैं । 


जौनसारी भाषा की अपनी लिपि का प्रयोग आम आदमी को करना चाहिए। उसके लिएआवश्यक पुस्तकों का लेखन किया जाना उचित होगा। साथ ही भाषा की व्याकरण का संकलन भीकरना होगा।


वर्तमान स्थिति

चुनौतियों व संभानाओं की दृष्टि से वर्तमान प्रतासों पर एक नज़र डालना उचित होगा । जौनसारी बोली भाषा के विकास हेतु स्वर्गीय श्री रतन सिंह जौनसारी “गुरूजी” का अविस्मरणीय योगदान है। सार्थक गीत व कविता रचना, गढ़ वैराट समाचार में जौनसारी भाषा के उनके लेख, महत्वपूर्ण योगदान हैं। जौनसारी  भाषा के विकास हेतु वर्तमान समय में महत्वपूर्ण कार्य हो रहे हैं। लोकगीतोंकी बहुत मात्रा में रचना  हो रही है जो क्षेत्र और बाहर काफ़ी पसंद किये जा रहे हैं। एक बड़े पर्दे कीफ़िल्म बन चुकी है, यूट्यूब आदि सोशल मीडिया फ़ोरमों पर हास्य नाटिकाएँ, और अन्य प्रकाशन भी सामने आ रहे हैं। क्षेत्र की बूढ़ी/पुरानी दिवाली  में लाइव हास्य नाटिकाओं के मंचन का चलन वापस बढ़ रहा है। श्री के एस रायहारुल व लोकगीतों का  संकलन प्रकाशित कर चुके हैं। पास ही के सिरमौर में हाल ही यूटीब पर “परिवार” पहाड़ी जौनसारी भाषा की एक सुंदर और काफ़ी  पसन्द की गई  फ़िल्म भी देखने को मिली। डांडा गाँव के श्री अनन्त राम नेगी ने कई सार्थक व मनोरंजक विक्रम रावत व बालम चौहान, आदि कलाकारों के साथ कुछ वर्षों पूर्व, कई फ़िल्में बनायी। हाल के समय में विक्रम व बालम जी अभी भी कई सार्थक विषयक सोशल मीडिया पर फ़िल्में  बनाकर पोस्ट करते आ रहे हैं । अन्य यूट्यूब और अन्य सोशल मीडिया प्लेफ़ॉर्मों पर  जौनसारी में चर्चाआखर संस्थाजौनसारी कवि सम्मेलन और घोष्ठियाँ आयोजित कर रही है। 


जौनसारी शब्दकोश, व्याकरण व लेखन  

वर्ष २०१० में लेखक ने जौनसारी भाषा का  शब्दकोशहिन्दी और  अंग्रेज़ी अर्थों के साथ प्रकाशितकिया जिसमें जौनसारी व्याकरण के प्राथमिक नियमों को भी सम्माहित किया गया। इस शब्दकोश का प्रयोग जौनसार बावर के स्कूलों हेतु जौनसारी भाषा की किताब बनाने में व्यापक स्तर पर हुआ। एक “फूल पूजाई” शीर्षक से  जौनसारी भी  कहानी लिखी है जिस पर दिल्ली में गढ़वाली कुमाऊँ जौनसारी अकादमी एक बाल्य नाटिका का मंचन कर चुकी है।  और अब लेखक लिपि की बेसिककिताब की रचना लगभग तैयार कर चुका है। इसमें कुछ कहानियों का और बाक्य कविताओं का अनुवाद किया है जैसे कवितायें - twinkle twinkle little star; उठो लाल आदि; कह - कौवा और पानी, बंदर और बिल्लियों का झगड़ा, आदि। 


निष्कर्ष : 

जौनसारी भाषा केवल संवाद का एक माध्यम नहीं हैबल्कि यह जौनसार-बावर की पहचानइतिहास और जीवनशैली का अभिन्न अंग है। इसका लुप्त होना केवल एक भाषा का लुप्त होनानहीं होगाबल्कि एक पूरी संस्कृति और ज्ञान परंपरा का विलुप्त होना होगा।

निष्कर्ष : 

अतः वर्तमान  प्रयासों से उम्मीद की किरण जगी है। शिक्षाप्रौद्योगिकीसरकारी समर्थन और सबसेबढ़करसामुदायिक भागीदारी के माध्यम से जौनसारी भाषा को बचाया जा सकता है। व्यापक फैलाव वाली जौनसारी भाषा का भविष्य उज्ज्वल दिख रहा है। सब मिलकर प्रयास करेंगेतोजौनसारी भाषा का भविष्य और भी अधिक गति से संवरेगा  साथ ही आने वाली पीढ़ियों को अपनीसमृद्ध भाषाई धरोहर सौंपना हम सबका कर्तव्य  है।

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